Tuesday, December 2, 2025

केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए तीनों नए कृषि कानून (New Farm Laws) के विरोध में किसानों का आंदोलन शुक्रवार को 23वें दिन जारी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली  की अलग-अलग सीमाओं पर बैठे किसानों ने कई रास्ते ब्लॉक कर रखे हैं। प्रदर्शनकारी किसान संगठनों की तरफ से रोज आंदोलन को तेज करने की रणनीति बनाई जा रही है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने गुरुवार किसानों को आठ पन्नों की एक चिट्ठी लिखी। इस पत्र में किसान कानून की खूबियां गिनाई हैं और साथ में इसको लेकर फैलाई गई भ्रांतियां भी बताई गई हैं।

किसान सरकार के हर प्रस्ताव, हर अपील को दरकिनार कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि तोमर जी ने कल जो चिट्ठी लिखी है वो देश को भ्रमित करने वाली है, उसमें कुछ नया नहीं है। कुछ नया होता तो हम उस पर टिप्पणी करते। किसान मजदूर संघर्ष समिति, पंजाब के दयाल सिंह  ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों से बात करनी चाहिए और खेत कानूनों को वापस लेना चाहिए। हम इन कानूनों के खिलाफ अपनी लड़ाई नहीं छोड़ेंगे।

इस बीच किसानों के आंदोलन का मसला सुप्रीम कोर्ट में है, इसलिए किसान नेताओं की निगाहें अदालती कार्यवाही पर भी बनी हुई हैं। हालांकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने मामले में किसानों को सड़कों से धरना-प्रदर्शन हटाने को लेकर कोई आदेश अब तक नहीं दिया है, लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि अगर अदालत की तरफ से उनको कोई नोटिस मिलेगा तो वे उस पर वकीलों की राय लेंगे। पंजाब में ऑल इंडिया किसान सभा के जनरल सेक्रेटरी मेजर सिंह पुनावाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से किसानों को जब इस संबंध में कोई नोटिस मिलेगा तो हम उस पर वकीलों की राय लेंगे। पुनावाल ने कहा कि किसानों का यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा है और यह तब तक चलता रहेगा, जब तक सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं लेगी।

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शरद अरविंद बोबडे ने गुरुवार को मामले में सुनवाई के दौरान सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से पूछा कि क्या आप यह आश्वासन दे सकते हैं कि जब तक मामले में सुनवाई चल रही है तब तक आप कानून को लागू नहीं करेंगे। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह कानून पर रोक लगाने की राय नहीं है बल्कि केंद्र सरकार और किसान यूनियन के बीच बातचीत की संभावनाओं को तलाशने की कवायद है। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि किसान नेता जिद पर अड़े हैं और वे तब तक कोई बात नहीं करना चाहते हैं, जब तक सरकार तीनों कानूनों को वापस नहीं ले लेती है।

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